बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः।।
श्रीमद् भागवत कथा के दसवें अध्याय के 35वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि ‘सामों में बृहत्साम मैं हूॅं। छंदों में गायत्री छंद मैं हूॅं। मासों में अर्थात् महीनों में मार्ग शीर्ष मास मैं हूॅं और ऋतुओं में वसंत ऋतु मैं हूॅं।’
उल्लास, उमंग और खुशहाली का यही वसंत हमारे हिन्दू नव वर्ष के आगमन का प्रथम संकेत है। वसंत ऋतु के आगमन पर प्रकृति में चारों ओर हरियाली छायी रहती है। शरद ऋतु के पतझड़ के बाद वृक्षों पर नयी कोपलें जीवन की नवीनता का संदेश देती है। वसंत में मौसम सुहावना होता है और खेत सरसों के फूलों से भरे पीताम्बर दिखाई पड़ते हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानों राग, रंग और उत्सव की यह ऋतु हिन्दू नव वर्ष के आगमन का स्वागत कर रही हो।
विक्रम संवत कब शुरू हुआ था ?
हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की पहली तिथि से विक्रम संवत को आधार मानकर हिन्दू नव वर्ष मनाते हैं। उज्जैन सम्राट विक्रमादित्य ने ईसा से 58 वर्ष पूर्व शकों को पराजित करने के बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की एकम को अपना राज्य स्थापित कर विक्रम संवत् की शुरुआत की थी। खगोल शास्त्री वराहमिहिर द्वारा वैज्ञानिक पद्धति से तैयार किया गया विक्रम संवत् कैलेंडर पूर्ण रूप से वैज्ञानिक काल गणना पर आधारित है। उसी दिन से विक्रम संवत् की भी शुरुआत हुई थी।
सृष्टि की रचना कब हुई?
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की एकम का सनातन में भी विशेष महत्व है, क्योंकि इस तिथि का सीधा जुड़ाव सृष्टि के निर्माण से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की। प्रभु श्री राम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ। शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् चैत्र नवरात्र का पहला दिन भी यही है। इसके अलावा सिखों के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी का जन्म भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की एकम को हुआ था। सिंधी समाज के आराध्य भगवान झूलेलाल भी इसी दिन प्रकट हुए थे। महर्षि गौतम का जन्म भी इसी दिन से माना गया है।
विक्रम संवत किस पर आधारित है?
हमारा हिन्दू कैलेंडर विक्रम संवत भारतीय पंचाग और काल निर्धारण का सबसे बड़ा आधार है। यह वैज्ञानिक रूप से काल गणना के आधार पर बना हुआ है। हमारे कैलेंडर में सभी 12 महीने राशियों के नाम पर हैं, इसका समय 365 दिन का होता है। अगर हम चन्द्र वर्ष की बात करे तो इसके महीने चैत्र से प्रारम्भ होते हैं, जिसकी समयावधि 354 दिनों की होती है, शेष बढ़े हुए 10 दिन अधिमास कहलाते हैं। इतना ही नहीं, ज्योतिष काल की गणना के अनुसार इसमें 27 प्रकार के नक्षत्रों का वर्णन है। एक नक्षत्र महीने में दिनों की संख्या भी 27 मानी गई है। सावन वर्ष में दिनों की संख्या लगभग 360 होती है और मास के दिन 30 होते हैं। हमारे हिन्दू कैलेंडर को आधार बनाकर ही यूनानियों ने अपना कैलेंडर तैयार किया और उसे दुनियां भर में फैलाया।
हिन्दू कैलेंडर का महत्व
भले ही आज दुनिया भर में अंग्रेजी कैलेंडर का प्रचलन बहुत अधिक हो गया हो लेकिन फिर भी हमारे हिन्दू कलैंडर की महत्ता कम नहीं हुई है। आज भी हम अपने व्रत-त्यौहार, महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि, विवाह व अन्य सभी शुभ कार्यों को करने के मुहूर्त आदि हिन्दू कलैंडर के अनुसार ही देखते हैं। यह प्रमाण है कि आज भी हम हमारी जड़ों से जुड़े हुए हैं और यह आवश्यक भी है। हमारी सनातन संस्कृति हज़ारों वर्षों से चली आ रही है। हम दुनियां की सबसे पुरानी एवं समृद्ध सभ्यता है, जोकि वैज्ञानिकता लिए हुए हैं। लेकिन पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव, विदेशी शासकों द्वारा हमारी संस्कृति पर प्रहार एवं शासन से कहीं न कहीं आज की पीढ़ी हमारे सनातन के मूल्यों एवं समृद्ध विरासत से दूर होती जा रही है।
आज के समय में आवश्यक है कि हम हमारी सनातनी संस्कृति, सभ्यता एवं मूल्यों से जुड़कर इसका संरक्षण एवं संवर्धन करें। हम विदेशी संस्कृति का सम्मान ज़रूर करें लेकिन उसे हमारी संस्कृति एवं जीवन पर हावी नहीं होने दें। हमारे पूर्वजों, हिन्दू शासकों, विद्वानों आदि ने हमारी सनातनी संस्कृति एवं सभ्यता की रक्षा के लिए अपनी क़ुरबानी दी है, ताकि आज हम हमारे हिन्दू त्यौहारों, उत्सवों को ख़ुशी के साथ मना सके। ऐसे में हमें हमारे मूल्यों के साथ जुड़कर सनातनी संस्कृति का न सिर्फ संरक्षण बल्कि संवर्धन भी करना है।
– भरत बोराणा
(यह विचार लेखक के निजी विचार है।)