यह कहानी है बिहार के बेगूसराय जिले के एक छोटे से गांव बिहत से निकलकर देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में भारतीय राष्ट्रीय छात्र परिषद (AISF) से पहले अध्यक्ष बनने वाले कन्हैया कुमार की।
कन्हैया कुमार का नाम तो आपने कई बार सुना होगा। वे आज के दौर में युवा राजनीति के प्रमुख चहरों में से एक है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहने के अलावा ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन यानी कि AISF के वे सदस्य है भी है और वर्तमान में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया की नेशनल एग्जीक्यूटिव काउंसिल में भी मेंबर है।
कन्हैया कुमार का जन्म 1987 में बिहार राज्य के बेगूसराय जिले के बिहत गांव हुआ था। जिस गांव में उनका जन्म हुआ था वह तेघड़ा विधानसभा के अंतर्गत आता है, जहाँ शुरू से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया का दबदबा रहा है। कन्हैया कुमार के पिता जयशंकर सिंह किसान है और उनकी माता आंगनवाड़ी में काम करती है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बिहार में ही हुई। उन्होंने नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में एम ए किया और उसके बाद 2011 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अफ्रीकन स्टडीज में पीएचडी करने के लिए दिल्ली आ गए और 2015 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के AISF के पहले अध्यक्ष बने।
आखिर कन्हैया कुमार में ऐसा क्या था कि वे रातों-रात स्टार बन गए और भारतीय युवा राजनीति का एक प्रमुख चेहरा बनकर सबके सामने आए ? कन्हैया कुमार को जानने वाले बताते हैं कि वह प्रखर वक्ता हैं। एक ऐसा प्रखर वक्ता जिसकी बातों में तर्क होता है, वह अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने में सक्षम होते हैं और जमीनी हकीकत से जुड़े और राष्ट्रीय मुद्दों से जुड़े मामले उठाने के कारण वे लोगों का ध्यान खींचते हैं। यही बात कन्हैया कुमार को औरों से अलग करती है।
जानकार बताते हैं कि 2008 में ही उन्होंने AISF ज्वाइन कर ली थी, तब वे बिहार में ही रहकर पढ़ाई कर रहे थे। इसी समय से उनके अंदर एक प्रखर वक्ता और राजनीति में आने का जुनून सवार था। जेएनयू आने के बाद भी उन्होंने इसे कायम रखा और एक अभूतपूर्व जीत भी दर्ज की।
मीडिया रिपोर्ट में छपी खबरों के मुताबिक उनके दोस्त बताते हैं कि कन्हैया कुमार के भाषण में बहुत तेज होता है कि हर कोई उनको सुनना चाहता है। इसके अलावा कन्हैया कुमार ऐसी जगह से आते हैं, जहां की परिस्थितियां शुरू से विपरीत रही है, ऐसे में उन्हें ऐसे विद्यार्थियों को आकर्षित करने में सफलता मिली जो विद्यार्थी आर्थिक हालातों से लड़ते हुए जेएनयू तक पहुंचे थे। इसके अलावा छात्रों की समस्याओं का समाधान निकालना, उनकी समस्याओं के लिए लड़ना, धरने – प्रदर्शन आदि ने भी कन्हैया कुमार को छात्र राजनीति में खड़ा करने में बहुत मदद की।
हालांकि कन्हैया कुमार का एक छात्र संघ अध्यक्ष के तौर पर कार्यकाल पूर्ण रूप से विवादों से भरा रहा। मार्च 2016 की शुरुआत से लेकर ही उन पर सेना विरोधी बयान देने और देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का भी आरोप लगा, जिसके चलते उन्हें तिहाड़ जेल भी जाना पड़ा। जिस पर उन्होंने अपनी एक किताब भी पब्लिश की जिसका नाम “बिहार टू तिहाड़ : माय पॉलीटिकल जर्नी” रखा।
इस सब के बावजूद कन्हैया कुमार का छात्र राजनीति में एक प्रमुख नाम के द्वार पर दबदबा कायम रहा। उन्होंने अपनी शैली से न सिर्फ युवा राजनेताओं का ध्यान अपनी और आकर्षित किया बल्कि कई राजनेताओं को तो लाइव डिबेट में उनसे मुंह की भी खानी पड़ी। कन्हैया कुमार ने 2019 में बेगूसराय से सीपीआई कैंडिडेट के तौर पर चुनाव भी लड़ा, लेकिन वह भाजपा के गिरिराज सिंह से एक बड़े अंतर से चुनाव हार गए।
इसके बावजूद कन्हैया कुमार की लोकप्रियता उनके भाषणों, उनकी बातों व उनके आक्रामक रवैये से आज तक बनी हुई है।
कन्हैया कुमार भारतीय राजनीति में और खासकर युवा राजनीति में एक ऐसा नाम है जिन्होंने सबसे कम समय में सबसे ऊंचे पदों को हासिल किया है। आज के समय में भारतीय राजनीति में युवाओं का रुझान उतना नहीं है, जितना होना चाहिए। इसके बावजूद देश के कुछ हिस्सों से ऐसे युवा नेता निकल कर आ रहे हैं जो भारतीय राजनीति की दशा और दिशा दोनों तय कर सकते हैं।
कन्हैया कुमार इसी युवा राजनीति का एक बड़ा नाम है।