रीट पेपर लीक मामले में बीजेपी का विरोध थम नहीं रहा है। सोमवार को जयपुर में भाजपा और युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज के विरोध में युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने जिले में स्थित कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा के आवास की बाहरी दीवार पर ‘नाथी का बड़ा’ लिखा। यह घर के दीवार के साथ-साथ बाहर बोर्ड पर भी लिखा गया।
दरअसल नाथी का बाड़ा अचानक तब सुर्खियों में आया जब राजस्थान के शिक्षा राज्य मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने उनके आवास पर ज्ञापन देने आए शिक्षकों से कहा कि उन्होंने अपने घर को नाथी का बाड़ा समझ लिया है? इसका वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ। नाथी का बड़ा का अर्थ है- एक ऐसी जगह जहां आप जो चाहें प्राप्त कर सकते हैं।
क्या है नाथी का बाड़ा और इसका मतलब?
नाथी का बाड़ा एक कहावत है,नाथी का बाड़ा एक ऐसी जगह है जहां आप जो चाहें प्राप्त कर सकते हैं। राजस्थान में ‘नाथी का बाड़ा‘ सिर्फ कहावत नहीं बल्कि किस्सा है। इसकी शुरुआत कहां और कैसे हुई, इसका इतिहास 150 से दो साल पुराना और बेहद दिलचस्प है।
दरअसल जिस नाथी के बाड़े की बात हम कर रहे है वो नाथी पाली जिले के भांगेसर गांव की रहने वाली थीं आज से तकरीबन 150 साल पहले पालीवाल ब्राहमण कुल में पैदा हुई थीं नाथी बाई बाल विधवा थीं, लेकिन उनके आदर्श उच्च थे उनका सम्मान ना सिर्फ भांगेसर गांव बल्कि आसपास के गांव भी करते थे। उम्र के साथ-साथ नाथी बाई का नाम, धन-दौलत और उदार दिल बेहद बड़ा होता गया था जिसके कारण नाथी के बाड़े में उम्मीद लेकर आने वाला कोई भी फरियादी खाली हाथ नहीं लौटता था।
लोग शादी ब्याह और दूसरे कामों के लिए नाथी बाई से उधार पैसे और अनाज लेने आते थे और नाथी बाई खुद अपने भरे खजाने से जरूरत के पैसे निकालने को कह देती थीं फिर जब कोई पैसा या उधार लिया गया धन वापस देने को आता था उसे वहीं रखने को कह देती थी जहां से वो उठा कर ले जाता था।
नाथी बाई कौन थी?
“नाथी का बाड़ा” की कथा नाथी बाई नाम की एक महिला से शुरू हुई थी। नाथी बाई राजस्थान के पाली जिले की रोहत तहसील के ग्राम भंगेसर की रहने वाली थी। करीब सौ साल पहले नाथी बाई का निधन हो गया था, लेकिन उनका परिवार भंगेसर में रहता है।
ऐसा कहा जाता है कि नाथी बाई दान की सच्ची देवी थीं। उनके घर के कमरे जरूरतमंदों के लिए खाद्यान्न से भरे हुए थे। खास बात यह है कि दान करते समय नाथी बाई ना तो अनाज तौलाती और ना ही नोटों की गिनती करती थी। वह मदद के लिए लोगों को मुट्ठी में भरकर पैसे देती थी। लोग बेझिझक उनके घर आते थे और मदद मांगते थे। ऐसे में उनका घर नाथी का बड़ा कहलाने लगा। बाड़ा का अर्थ है एक ऐसी जगह जहां से कोई भी आ, जा सकता है और किसी भी समय सहायता प्राप्त कर सकता है।
नाथी बाई वैसे तो बाल विधवा थी जिसके कारण उन्होंने अपने बूढ़ापे के सहारे के रूप एक बच्चे को गोद लिया था कहा जाता है कि नाथी बाई ने दिए अपने हाथ के धन का न तो कोई हिसाब रखती न ही वापस लौटाने को कहती थी मगर उस समय के लोग खुद ब खुद उधार लिए धन को वापस लौटाने आते थे।
नाथी बाई का परिवार अब कहाँ है?
रियासत काल में बने नाथी बाई के जीर्ण-शीर्ण मकान के कारण उनके परिवार के सदस्यों ने घर का जीर्णोद्धार करवाया और वहां पक्के मकान बनवाए और अभी भी सभी लोग उसी घर में और उसके आस पास रखते हैं। उनके घर के प्रवेश द्वार पर रखे पत्थर पर ‘नाथी भवन’ लिखा हुआ है। घर की ओर जाने वाली गली शुरू होते ही एक चबूतरा भी है, जिसे बेटी की शादी के लिए व्रत के दौरान नथी बाई ने बनवाया था।
लोग नाथी बाई को नाथी मां कहकर बुलाते थे। नाथी मां से जुड़ी एक बात है कि उन्होंने अपनी बेटी की शादी के लिए 60 गांवों के लोगों को आमंत्रित किया था। प्रेम के पर्व में घी की नालियां बह रही थीं। घी बहते हुए गांव के प्रवेश द्वार तक पहुंच गया था।